अन्न से ही शरीर चलता है। अन्न ही जीवन का आधार है। अन्न प्राण है, इसलिए इसका दान प्राणदान के समान है। यह सभी दानों में श्रेष्ठ और ज्यादा फल देने वाला माना गया है। यह धर्म का सबसे महत्वपूर्ण अंग है।
इंद्र आदि देवता भी अन्न की उपासना करते हैं। वेद में अन्न को ब्रह्मा कहा गया है। सुख की कामना से ऋषियों ने पहले अन्न का ही दान किया था। इस दान से उन्हें पारलौकिक सुख मिला। उन्होंने मोक्ष पाया।
अन्नदान में तिलहन का महत्व क्या है ?
जो श्रद्धालु विधि विधान से अन्नदान करता है, उसे पुण्य मिलता है। सभी दिनों में अन्नदान वाले श्रद्धालु ब्राह्मण भोजन के बजाय पुरोहितों की खिचड़ी (मिश्रित कच्चा दाल, चावल) का दान करते हैं। अन्नदान में तिलदान का बहुत महत्व है। मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और तिल षष्ठी, एकादशी के दिन काशी में तिल और तिल के लड्डू दान करने से बहुत पुण्य मिलता है। इन तिथियों पर पुरोहितों को कई बोरे खिचड़ी और काफी मात्रा में तिल के लड्डू दान में देते है।

ब्राह्मणों को क्यों बुलाना चाहिए ?
पुण्य मास में शुक्ल पक्ष में सूर्योदय के समय उत्तम तिथि, शुभवार, उत्तम नक्षत्र और योग में पत्नी के साथ पवित्र होकर ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलाना चाहिए। भोजन से पहले ब्राह्मणों को मंगलपाठ करना चाहिए। इन ब्राह्मणों में एक आचार्य का वरण करना चाहिए। दस या आठ ब्राह्मणों को ऋत्विज बनाना चाहिए।
पूजन के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। श्ब्राह्मणों को भोजन कराने से पहले उनके चरण धोना चाहिए। गंध, अक्षत, फूल, दीप, घी वगैरह उन्हें समर्पित करना चाहिए। जिस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने का संकल्प पूरा हो जाए, उस दिन अभिषेक हवन करना चाहिए। मंत्र से संख्यानुसार आहुति देनी चाहिए।
इस तरह अन्नदान पूरा होने पर आचार्य को बछड़े के साथ गो दान देनी चाहिए। ब्राह्मणों को भी बैल और घोड़ा भी देने का विधान है। भोजन के बाद ब्राह्मणों को सामर्थनुसार दक्षिणा देनी चाहिए।

दत्वाल्पमपि देवेशि न्यायोपार्जितंधनम्।
अविमुक्ते ममक्षेत्रे न दरिद्रोभवेत्क्वचित्।।
इस दान के सम्पन्न होने पर भगवान आदिविशेश्वर से यह प्रार्थना करनी चाहिए- हे आप, आप इसके रूप हैं, आप हमारे अन्नदान से प्रसन्न हों। भात या उसका एक चावल भी अति पवित्र कहा जाता है। पका हुआ भोजन इन्द्र के राज्य जैसा है। इसमें मिर्च, इलायची, गुड़ डालकर इसे स्वादिष्ट बनाया गया। इसके साथ ताम्बूल और श्रद्धा सहित मैं आपको, दक्षिणा समर्पित करता हूं। आप इसे स्वीकार करें और इसका पुण्य फल दें।