शास्त्रों में अन्नदान को महादान कहा जाता है। किसी भी धर्म में लोग कोई शुभ काम करने के बाद अन्नदान करते है। कहा जाता है कि इससे आपको देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है वहीं आपकी पूजा सफल हो जाती है। शास्त्रों में कहा गया है कि जितना आप दान करते है उतना आपके घर में बरकत होती है। अन्न एकमात्र ऐसी चीज है जिससे शरीर के साथ-साथ आत्मा भी तृप्त होती है।

अन्नं ब्रह्मा रसो विष्णुः। स्कन्दपुराण के अनुसार अन्न ही ब्रह्मा है और सबके प्राण अन्न मे ही प्रतिष्ठित हैं ण्ण् अन्नं ब्रह्म इति प्रोक्तमन्ने प्राणाः प्रतिष्ठिताः।
अतः स्पष्ट है कि अन्न ही जीवन का प्रमुख आधार है। इसलिए अन्नदान तो प्राणदान के समान है।
अन्नदान को सर्वश्रेष्ठ एवं पुण्यदायक माना गया है। धर्म में अन्नदान के बिना कोई भी जप, तप या यज्ञ आदि पूर्ण नहीं होता है। अन्न एकमात्र ऐसी वस्तु है जिससे शरीर के साथ-साथ आत्मा भी तृप्त होती है। इसीलिए कहा गया है कि अगर कुछ दान करना ही है तो अन्नदान करो।
दरिद्र नारायण की सेवा ही सच्ची पूजा है। दीनहीन, विकलांगों व गरीबों की सेवा के लिए मन में हमेशा श्रद्धा होनी चाहिए।
हमारे धर्म ग्रंथों में प्रत्येक प्राणी मात्र मे ईश्वर का चेतन स्वरूप विद्यमान माना गया है विशेष रूप से नर सेवा को नारायण सेवा के रूप में अंगीकार किया गया है।
पद्मपुराण में इससे संबंधित एक कथा भी मिलती है। एक बार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी और विदर्भ के राजा श्वेत के बीच संवाद हो रहा होता हैं। इस संवाद से यह पता चलता है कि व्यक्ति अपनी जीवित अवस्था में जिस भी वस्तु का दान करता है, मृत्यु के बाद वही चीज उसे परलोक में प्राप्त होती है।
राजा श्वेत अपनी कठोर तपस्या के बल पर ब्रह्मलोक तो पहुंच जाते हैं लेकिन अपने जीवनकाल में कभी भोजन का दान ना करने के कारण उन्हें वहां भोजन प्राप्त नहीं होता।
अन्न दान भोजन के साथ अपने रिश्ते को चेतना और जागरूकता के निश्चित स्तर पर लाने के लिए एक संभावना है। इसे सिर्फ भोजन के रूप में मत देखियें, यह जीवन है। यह हम सब को समझना बहुत जरूरी है – जब भी आप के सामने भोजन आता है, आप इसें एक वस्तु की तरह न समझें जिसका आप उपयोग कर सकते हैं या फेंक सकते है – यह जीवन है।
अगर आप अपने जीवन को विकसित करना चाहते हैं,तो आप को भोजन,जल,वायु और पृथ्वी को जीवन के रूप में देखना होगा – क्योंकि ये वे तत्व है जिससे आपका निर्माण हुआ है। अन्न दान एक तरीका है जिस के द्वारा आप पूरे जुड़ाव के साथ अपने हाथों से, प्रेम और भक्ति के साथ खाना परोसते हुए दूसरे इंसान से गहराई से जुड़ सकते हैं।
साईं इतना दीजिए, जामें कुटुम्ब समाय।मैं
भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय।।